500+ हिंदी मुहावरे | Muhavare In Hindi | हिंदी में मुहावरे

Muhavare In Hindi – नमस्कार दोस्तो आज के इस आर्टिकल में हम आपके के लिए हिंदी में मुहावरे लेकर आए हैं मुहावरा शब्द अरबी भाषा से लिया गया हैं जिसका अर्थ है ‘अभ्यास होना’ या आदी होना’ इस प्रकार मुहावरा शब्द अपने–आप में स्वयं मुहावरा है, क्योंकि यह अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर असामान्य अर्थ प्रकट करता है। इस आर्टिकल में हमने 500+ हिंदी मुहावरे दिए है इस पोस्ट को लास्ट तक जरुर पढ़ें

Muhavare In Hindi

Muhavare In Hindi | hindi muhavare | 500 मुहावरे

1. अक्ल पर पत्थर पड़ना– (कुछ समझ में न आना)

मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं, कुछ समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ।

2. अंगूठी का नगीना– (सजीला और सुन्दर)

विनय कम्पनी की अंगूठी का नगीना है।

3. अन्न न लगना– (खाकर–पीकर भी मोटा न होना)

अभय अच्छे से अच्छा खाता है, लेकिन उसे अन्न नहीं लगता।

4. अधर में लटकना या झूलना– (दुविधा में पड़ा रह जाना)

कल्याण सिंह भाजपा में पुन: शामिल होंगे यह फैसला बहुत दिन तक अधर में लटका रहा।

5. अठखेलियाँ सूझना– (हँसी दिल्लगी करना)

मेरे चोट लगी हुई है, उसमें दर्द हो रहा है और तुम्हें अठखेलियाँ सूझ रही हैं।

6. अल्लाह मियाँ की गाय– (सरल प्रकृति वाला)

रामकुमार तो अल्लाह मियाँ की गाय है।

7. अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना– (मूर्खतापूर्ण कार्य करना)

तुम हमेशा अक्ल के पीछे लट्ठ लिए क्यों फिरते हो, कुछ समझ–बूझकर काम किया करो।

8. अन्दर होना– (जेल में बन्द होना)

मायावती के राज में शहर के अधिकतर गुण्डे अन्दर हो गए।

9. अरमान निकालना– (इच्छाएँ पूरी करना)।

बेरोज़गार लोग नौकरी मिलने पर अरमान निकालने की सोचते हैं।

10. अंकुश लगाना–(पाबन्दी या रोक लगाना)

राजेश खर्चीला लड़का था। अब उसके पिता ने उसका जेब खर्च बन्द

करके उसकी फ़िजूलखर्ची पर अंकुश लगा दिया है।

11. अंग टूटना–(थकावट से शरीर में दर्द होना)

दिन भर काम करा अब तो अंग टूट रहे हैं।

13. अंधेर नगरी–(जहाँ धांधली हो)

पूँजीवादी व्यवस्था ‘अंधेर नगरी’ बनकर रह गई है।

14. अंकुश न मानना–(न डरना)

युवा पीढ़ी किसी का अंकुश मानने को तैयार नहीं है।

15. अन्न का टन्न करना–(बनी चीज को बिगाड़ देना)

अभी–अभी हुए प्लास्टर पर तुमने पानी डालकर अन्न का टन्न कर दिया।

16. अंगारे बरसना–(कड़ी धूप होना)

जून के महीने में अंगारे बरस रहे थे और रिक्शा वाला पसीने से लथपथ था।

17. अक्ल खर्च करना–(समझ को काम में लाना)

इस समस्या को हल करने में थोड़ी अक्ल खर्च करनी पड़ेगी।

18. अड्डे पर चहकना–(अपने घर पर रौब दिखाना)

अड्डे पर चहकते फिरते हो, बाहर निकलो तो तुम्हें देखा जाए।

19. अँधेरे घर का उजाला–(इकलौता बेटा)

मयंक अँधेरे घर का उजाला है।

20. अपना सा मुँह लेकर रह जाना–(लज्जित होना)

विजय परीक्षा में नकल करते पकड़े जाने पर अपना–सा मुँह लेकर रह गया।

21. अरण्य रोदन–(व्यर्थ प्रयास)

कंजूस व्यक्ति से धन की याचना करना अरण्य रोदन है।

22. अंग–अंग ढीला होना–(बहुत थक जाना)

सारा दिन काम करते करते, आज अंग–अंग ढीला हो गया है।

23. अन्न–जल बदा होना–(कहीं का जाना और रहना अनिवार्य हो जाना)

हमारा अन्न–जल तो मेरठ में बदा है।

24. अधर काटना–(बेबसी का भाव प्रकट करना)

पुलिस द्वारा बेटे की पिटाई करते देख पिता ने अपने अधर काट लिए।

25. अन्धे की लकड़ी–(एक मात्र सहारा)

राकेश अपने माँ–बाप के लिए अन्धे की लकड़ी के समान है।

26. अंन्धे के हाथ बटेर लगना–(अनायास ही मिलना)

राजेश हाईस्कूल परीक्षा में प्रथम आया, उसके लिए तो अन्धे के हाथ बटेर लग गई।

27. अंगारे उगलना–(क्रोध में लाल–पीला होना)

अभिमन्यु की मृत्यु से आहत अर्जुन कौरवों पर अंगारे उगलने लगा।

28. अंगारों पर पैर रखना–(स्वयं को खतरे में डालना)

व्यवस्था के खिलाफ लड़ना अंगारों पर पैर रखना है।

29. अपनी हाँकना–(आत्म श्लाघा करना)

विवेक तुम हमारी भी सुनोगे या अपनी ही हाँकते रहोगे।

30. अर्श से फर्श तक–(आकाश से भूमि तक)

भ्रष्टाचार में लिप्त बाबूजी बड़ी शेखी बघारते थे, एक मामले में निलंबित होने पर वे अर्श से फर्श पर आ गए।

31. अलबी–तलबी धरी रह जाना–(निष्प्रभावी होना)

बहुत ज्यादा परेशान करोगी तो तुम्हारे घर शिकायत कर दूंगा। सारी अलबी–तलबी धरी रह जाएगी।

32. अन्धाधुन्ध लुटाना–(बहुत अपव्यय करना)

उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों की बीवियाँ अन्धाधुन्ध पैसा लुटाती हैं।

33. अपनी खाल में मस्त रहना–(अपनी दशा से सन्तुष्ट रहना)

संजय 4000 रुपए कमाकर अपनी खाल में मस्त रहता है।

34. अंगूठा दिखाना–(इनकार करना)

आज हम हरीश के घर ₹10 माँगने गए, तो उसने अँगूठा दिखा दिया।

35. अंग न समाना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)

सिविल सेवा में चयन से अनुराग अंग नहीं समा रहा है।

36. अंगूठे पर मारना–(परवाह न करना)

तुम अजीब व्यक्ति हो, सभी की सलाह को अंगूठे पर मार देते हो।

37. अंटी मारना–(कम तौलना)

बहुत से पंसारी अंटी मारने से बाज नहीं आते।

38. अन्धे के आगे रोना–(व्यर्थ प्रयत्न करना)

अन्धविश्वासी अज्ञानी जनता के मध्य मार्क्सवाद की बात करना अन्धे के आगे रोना है।

39. अंगूर खट्टे होना–(अप्राप्त वस्तु की उपेक्षा करना)

अजय, “सिविल सेवकों को नेताओं की चापलूसी करनी पड़ती है” कहकर, अंगूर खट्टे वाली बात कर रहा है, क्योंकि वह परिश्रम के बावजूद नहीं चुना गया।

40. अन्न–जल उठना–(प्रस्थान करना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले

जाना) रिटायर होने पर प्रोफेसर साहब ने कहा, “लगता है बच्चों, अब तो यहाँ से हमारा अन्न–जल उठ ही गया है। हमें अपने गाँव जाना पड़ेगा।”

41. अक्ल के अन्धे–(मूर्ख, बुद्धिहीन)

“सुधीर साइन्स (साइड) के विषयों में अच्छी पढ़ाई कर रहा था, मगर उस अक्ल के अन्धे ने इतनी अच्छी साइड क्यों बदल दी ?” सुधीर के एक मित्र ने उसके बड़े भाई से पूछा।

42. अंतड़ियों में बल पड़ना–(संकट में पड़ना)

अपने दोस्त को चोरों से बचाने के चक्कर में, मैं ही पकड़ा गया और मेरी ही अंतड़ियों में बल पड़ गए।

43. अन्धा बनाना–(मूर्ख बनाकर धोखा देना)

अपने गुरु को अन्धा बनाना सरल कार्य नहीं है, इसलिए मुझसे ऐसी बात मत करो।

44. अक्ल चरने जाना–(बुद्धिमत्ता गायब हो जाना)

तुमने साठ साल के बूढ़े से 18 वर्ष की लड़की का विवाह कर दिया, लगता है तुम्हारी अक्ल चरने गई थी।

45. अड़ियल टटू–(जिद्दी)

आज के युग में अड़ियल टटू पीछे रह जाते हैं।

46. अंग लगाना–(आलिंगन करना)

प्रेमिका को बहुत समय पश्चात् देखकर रवि ने उसे अंग लगा लिया।

47. अक्ल का अंधा/अक्ल का दुश्मन होना–(महामूर्ख होना।)

राजू से साथ देने की आशा मत रखना, वह तो अक्ल का अंधा है।

48. अपनी खिचड़ी अलग पकाना–(अलग–थलग रहना, किसी की न

मानना) सुनीता की पड़ोसनों ने उसको अपने पास न बैठता देखकर कहा, “सुनीता तो अपनी खिचड़ी अलग पकाती है, यह चार औरतों में नहीं बैठती।”

49. अपना उल्लू सीधा करना–(स्वार्थ सिद्ध करना)

आजकल के नेता सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं।

50. अपने मुँह मियाँ मिठू बनना–(आत्मप्रशंसा करना) राजू अपने मुँह .

मियाँ मिठू बनता रहता है।

51. अक्ल के घोड़े दौड़ाना–(केवल कल्पनाएँ करते रहना)

सफलता अक्ल के घोड़े दौड़ाने से नहीं, अपितु परिश्रम से प्राप्त होती है।

(आ)

52. आकाश–पाताल एक करना–(कठिन परिश्रम करना)

मैं व्यवस्था को बदलने के लिए आकाश–पाताल एक कर दूंगा।

53. आकाश–कुसुम होना–(दुर्लभ होना)

किसी सामान्य व्यक्ति के लिए विधायक का पद आकाश–कुसुम हो गया

54. आँख निकलना–(विस्मय होना)

अपने खेत में छिपा खजाना देखकर गोधन की आँख निकल आई।

55. आँख मैली करना–(दिखावे के लिए रोना/बुरी नजर से देखना)

अरुण ने अपने घनिष्ठ मित्र की मृत्यु पर भी केवल अपनी आँखें ही मैली की।

56. आँखों में धूल झोंकना–(धोखा देना)

कुछ डकैत पुलिस की आँखों में धूल झोंककर मुठभेड़ से बचकर निकल गए।

57. आसमान टूटना–(विपत्ति आना)

भाई और भतीजे की हत्या का समाचार सुनकर, मुख्यमन्त्री जी पर आसमान टूट पड़ा।

58. आटे दाल का भाव मालूम होना–(वास्तविकता का पता चलना)

अभी माँ–बाप की कमाई पर मौज कर लो, खुद कमाओगे तो आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा।

59. आड़े हाथों लेना–(खरी–खोटी सुनाना)

वीरेन्द्र ने सुरेश को आड़े हाथों लिया।

60. आव देखा न ताव–(बिना सोचे–विचारे)

शिक्षक ने आव देखा न ताव और छात्र को पीटना शुरू कर दिया।

61. आँखों में खून उतरना–(अत्यधिक क्रोधित होना)

आतंकवादियों की हरकत देखकर पुलिस आयुक्त की आँखों में खून उतर आया था।

62. आधी जान सूखना–(अत्यन्त भय लगना)

घर में चोरों को देखकर लालाजी की आधी जान सूख गई।

63. आपे से बाहर होना–(क्रोध से अपने वश में न रहना)

फ़िरोज़ खिलजी ने आपे से बाहर होकर फ़कीर को मरवा दिया।

64. आग लगाकर तमाशा देखना–(लड़ाई कराकर प्रसन्न होना)

हमारे मुहल्ले के संजीव का कार्य तो आग लगाकर तमाशा देखना है।

65. आगे का पैर पीछे पड़ना–(विपरीत गति या दशा में पड़ना)

सुरेश के दिन अभी अच्छे नहीं हैं, अब भी आगे का पैर पीछे पड़ रहा है।

66. आटे दाल की फ़िक्र होना–(जीविका की चिन्ता होना)

पढ़ाई समाप्त होते ही तुम्हें आटे दाल की फ़िक्र होने लगी है।

67. आग पर तेल छिड़कना–(और भड़काना)

बहुत से लोग सुलह सफ़ाई करने के बजाय आग पर तेल छिड़कने में प्रवीण होते हैं।

68. आटा गीला होना–(कठिनाई में पड़ना)

सुबोध को एंक के पश्चात् दूसरी मुसीबत घेर लेती है, आर्थिक तंगी में। उसका आटा गीला हो गया।

69. आँचल में बाँधना–(ध्यान में रखना)

पति–पत्नी को एक–दूसरे पर विश्वास करना चाहिए, यह बात आँचल में बाँध लेनी चाहिए।

70. आकाश में उड़ना–(कल्पना क्षेत्र में घूमना)

बिना धन के कोई व्यापार करना आकाश में उड़ना है।

71. आग पर पानी डालना–(झगड़ा मिटाना)

भारत व पाक आपसी समझबूझ से आग पर पानी डाल रहे हैं।

72. आँखें दिखाना–(डराने–धमकाने के लिए रोष भरी दृष्टि से देखना)

रामपाल ने अपने ढीठ बेटे को जब तक आँखें न दिखायीं, तब तक उसने उनका कहना नहीं माना।

73. आँखें तरेरना–(क्रोध से देखना)

पैसे न हो तो पत्नी भी आँखें तरेरती है।

74. आँखों का तारा–(अत्यन्त प्रिय)

इकलौता बेटा अपने माँ–बाप की आँखों का तारा होता है।

75. आसमान सिर पर उठाना–(उपद्रव मचाना)

शिक्षक की अनुपस्थिति में छात्रों ने आसमान सिर पर उठा लिया।

76. आग–पानी या आग और फूस का बैर होना–(स्वाभाविक शत्रुता होना)

भाजपा और साम्यवादी पार्टी में आग–पानी या आग और फूस का बैर है।

77. आँख लगना–(झपकी आना)

रात एक बजे तक कार्य किया, फिर आँख लग गई।

78. आँखों से गिरना–(आदर भाव घट जाना)

जनता की निगाहों से अधिकतर नेता गिर गए हैं।

79. आँखों पर चर्बी चढ़ना–(अहंकार से ध्यान तक न देना)

पैसे वाले हो गए हो, अब क्यों पहचानोगे, आँखों पर चर्बी चढ़ गई है ना।

80. आगा पीछा करना–(हिचकिचाना)

सेठ जी किसी शुभ कार्य हेतु चन्दा देने के लिए आगा पीछा कर रहे हैं।

81. आग बबूला होना–(अत्यधिक क्रोधित होना)

कई बार मना करने पर भी जब दिनेश नहीं माना, तो उसके चाचा जी उस पर आग बबूला हो उठे।

82. आँखें नीची होना–(लज्जित होना)

बच्चों की करतूतों से माँ–बाप की आँखें नीची हो गईं।

83. आँखें मूंदना–(मर जाना)

आजकल तो बाप के आँखें मूंदते ही बेटे जायदाद का बँटवारा कर लेते हैं।

84. आँख में खटकना–(बुरा लगना)

स्पष्टवादी व्यक्ति अधिकतर लोगों की आँखों में खटकता है।

85. आँख का उजाला–(अति प्रिय व्यक्ति)

राज अपने माता–पिता की आँखों का उजाला है।

86. आँख मारना–(इशारा करना)

रमेश ने सुरेश को कल रात वाली बात न बताने के लिए आँख मारी।

87. आँख में घर करना–(हृदय में बसना)

विभा की छवि राज की आँखों में घर कर गई।

88. आँख लगाना– (बुरी अथवा लालचभरी दृष्टि से देखना)

चीन अब भी भारत की सीमाओं पर आँख लगाये हुए हैं।

89. आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटकना–(उत्तम स्थान को

त्यागकर ऐसे स्थान पर जाना जो अपेक्षाकृत अधिक कष्टप्रद हो) बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद किराना स्टोर करने पर दयाशंकर को ऐसा लगा कि वह आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटक गया है।

90. आँखों पर परदा पड़ना–(धोखा होना)

शर्मा जी ने सच्चाई बताकर, मेरी आँखों से परदा हटा दिया।

91. आँख बिछाना–(स्वागत, सम्मान करना)

रामचन्द्र जी की अयोध्या वापसी पर अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में आँखें बिछा दीं।

92. आँखों में धूल डालना–(धोखा देना)

सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ों की आँखों में धूल डालकर, अपने आवास से निकलकर विदेश पहुँच गए।

93. आठ–आठ आँसू रोना–(बहुत पश्चात्ताप करना)

दसवीं कक्षा में पुन: अनुत्तीर्ण होकर रमेश ने आठ–आठ आँसू रोये थे।

94. आसन डोलना–(विचलित होना)

विश्वामित्र की तपस्या से इन्द्र का आसन डोल गया।

95. आँखें ठण्डी करना–(प्रिय–वस्तु को देखकर सुख प्राप्त करना)

पोते को वर्षों बाद देखकर बाबा की आँखें ठण्डी हो गईं।

96. आँखें फाड़कर देखना–(आश्चर्य से देखना)

ऐसे आँखें फाड़कर क्या देख रही हो, पहली बार मिली हो क्या?

97 . आग–पानी साथ रखना–(असम्भव कार्य करना)

अहिंसा द्वारा भारत में क्रान्ति लाकर गाँधीजी ने आग–पानी साथ रख दिया।

98. आँखों का पानी ढलना (निर्लज्ज होना)

अब तो तुम किसी की नहीं सुनते, लगता है, तुम्हारी आँखों का पानी ढल गया है।

99. आवाज़ उठाना–(विरोध में कहना)

वर्तमान व्यवस्था के विरोध में मीडिया में आवाज़ उठने लगी है।

100. आसमान से तारे तोड़ना–(असम्भव काम करना)

अपनी सामर्थ्य समझे बिना ईश्वर को चुनौती देकर तुम आकाश से तारे तोड़ना चाहते हो?

101. आस्तीन का साँप–(विश्वासघाती मित्र)

राज ने निर्भय की बहुत सहायता की लेकिन वह तो आस्तीन का साँप निकला।

102. आँख का काँटा–(बुरा होना)

मनोज मुझे अपनी आँख का काँटा समझता है, जबकि मैंने कभी उसका बुरा नहीं किया।

103. आकाश से बातें करना–(काफी ऊँचा होना)

दिल्ली में आकाश से बातें करती बहुत–सी इमारतें हैं।

104. आँखें चार करना–(आमना–सामना करना)

एक दिन अचानक केशव से आँखें चार हुईं और मित्रता हो गई।

105. आँखें फेरना–(उपेक्षा करना)

जैसे ही मेरी उच्च पद प्राप्त करने की सम्भावनाएँ क्षीण हुईं, सबने मुझसे आँखें फेर ली।

106. आँख भरकर देखना–(इच्छा भर देखना)

जी चाहता है तुम्हें आँख भरकर देख लूँ, फिर न जाने कब मिलें।

107. आँख खिल उठना–(प्रसन्न हो जाना)

पिता जी ने जैसे ही अपने छोटे से बच्चे को देखा, वैसे ही उनकी आँख खिल उठी।

108. आँख चुराना–(कतराना)

जब से विजय ने अजय से उधार लिया है, वह आँख चुराने लगा है।

109. आँख का काजल चुराना–(सामने से देखते–देखते माल गायब

कर देना) विवेक के देखते ही देखते उसका सामान गायब हो गया; जैसे किसी ने उसकी आँख का काजल चुरा लिया हो।

(इ)

110. इशारों पर नाचना–(गुलाम बनकर रह जाना)

बहुत से व्यक्ति अपनी पत्नी के इशारों पर नाचते हैं।

111. इधर की उधर करना–(चुगली करके भड़काना)

मनोज की इधर की उधर करने की आदत है, इसलिए उस पर विश्वास मत करना।

112. इन्द्र की परी–(अत्यन्त सुन्दर स्त्री)

राजेन्द्र की पत्नी तो इन्द्र की परी लगती है।

113. इन तिलों में तेल नहीं–(किसी भी लाभ की आशा न करना)

कपिल ने कारखाने को देख सोच लिया इन तिलों में तेल नहीं और बैंक से ऋण लेकर बहन का विवाह किया।

114. इधर–उधर की हाँकना–(अप्रासंगिक बातें करना)

आजकल कुछ नवयुवक इधर–उधर की हाँकते रहते हैं।

(ई)

115. ईंट का जवाब पत्थर से देना–(दुष्ट के साथ दुष्टता करना)

दुश्मन को सदैव ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए।

116. ईद का चाँद होना–(बहुत दिनों बाद दिखाई देना)

रमेश आप तो ईद का चाँद हो गए, एक वर्ष बाद दिखाई दिए।

117. ईंट–ईंट बिक जाना–(सर्वस्व नष्ट हो जाना)

“चाचाजी का व्यापार फेल हो गया और उनकी ईंट–ईंट बिक गई।”

118. ईंट से ईंट बजाना–(नष्ट–भ्रष्ट कर देना)

असामाजिक तत्त्व रात–दिन ईंट से ईंट बजाने की सोचा करते हैं।

(उ)

119. उजाला करना–(कुल का नाम रोशन करना)

आई. ए. एस. परीक्षा में उत्तीर्ण होकर बृजलाल ने अपने कुल में उजाला कर दिया।

120. उम्र का पैमाना भर जाना–(जीवन का अन्त नज़दीक आना)।

141. उबल पड़ना–(एकदम गुस्सा हो जाना)

सक्सेना साहब तो थोड़ी–सी बात पर ही उबल पड़ते हैं।

121. उल्टी माला फेरना–(अहित सोचना)

अपने दोस्त के नाम की उल्टी माला फेरना बुरी बात है।

122. उखाड़ पछाड़ करना–(त्रुटियाँ दिखाकर कटूक्तियाँ करना)

उखाड़ पछाड़ करने में ही तुम निपुण हो, लेकिन त्रुटियाँ दूर करना तुम्हारे वश की बात नहीं है।

वह अब बूढ़ा हो गया है, उसकी उम्र का पैमाना भर गया।

123. उरद के आटे की तरह ऐंठना–(क्रोध करना)

आप बहल पर उरद के आटे की तरह ऐंठ रहे हो, उसका कोई दोष नहीं है।

124. ऊँचे नीचे पैर पड़ना–(बुरे काम में फँसना)

अनुज में बहुत–सी गन्दी आदतें आ गई हैं, उसके पैर ऊँचे–नीचे पड़ने लगे हैं।

125. उँगली उठाना–(इशारा करना, आलोचना करना।)

सच्चे और ईमानदार व्यक्ति पर उँगली उठाना व्यर्थ है।

126. उँगली पर नचाना–(वश में रखना)

श्रीकृष्ण गोपियों को अपनी उँगली पर नचाते थे।।

127. उड़ती चिड़िया पहचानना–(दूरदर्शी होना)

हमसे चाल मत चलो, हम भी उड़ती चिड़िया पहचानते हैं।

128. उल्लू बोलना–(उजाड़ होना)

पुराने शानदार महलों के खण्डहरों में आज उल्लू बोलते हैं।

129. उल्टी गंगा बहाना–(नियम के विरुद्ध कार्य करना)

भारत कला और दस्तकारी का सामान निर्यात करता है, फिर भी कुछ लोग विदेशों से कला व दस्तकारी का सामान मँगवाकर उल्टी गंगा बहाते हैं।

130. उन्नीस बीस होना–(दो वस्तुओं में थोड़ा बहुत अन्तर होना)

दुकानदार ने बताया कि दोनों कपड़ों में उन्नीस बीस का अन्तर है।

131. उल्टी खोपड़ी होना–(ऐसा व्यक्ति जो उचित ढंग के विपरीत आचरण करता हो)

“चौधरी साहब, आपका छोटा बेटा बिल्कुल उल्टी खोपड़ी का है, आज फिर वह गाँव में उपद्रव मचा आया।” वृद्ध ने चौधरी को बताया।

132. उँगलियों पर गिनने योग्य–(संख्या में न्यूनतम/बहुत थोड़े)

भारत की सेना में उस समय उँगलियों पर गिनने योग्य ही सैनिक थे, जब उन्होंने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

133. उल्टे छुरे से मूंडना–(किसी को मूर्ख बनाकर उससे धन ऐंठना या अपना काम निकालना)

यह पुरोहित यजमानों को उल्टे छुरे से मूंडने में सिद्धहस्त है।

134. उल्टी पट्टी पढ़ाना–(बहकाना)

तुम मैच खेल रहे थे और मुझे उल्टी पट्टी पढ़ा रहे हो कि स्कूल बन्द था और मैं स्कूल से दोस्त के घर चला गया था।

135. उड़न छू होना–(गायब हो जाना)

रीता अभी तो यहीं थी, मिनटों में कहाँ उड़न छू हो गई।

136. ऊँट का सुई की नोंक से निकलना–(असम्भव होना)

पूँजीवादी व्यवस्था में आम जनता का जीवन सुधरना ऊँट का सुई की नोंक से निकलना है।

137. ऊधौ का लेना न माधौ का देना–(किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध न

रखना) वह बेचारा दीन–दुनिया से इतना तंग आ गया है कि अब वह सबके साथ ‘ऊधो का लेना, न माधौ का देना’ की तरह का व्यवहार करने लगा है।

138. ऊँचे नीचे पैर पड़ना–(बुरे काम में फँसना)

अनुज में बहुत–सी गन्दी आदतें आ गई हैं, उसके पैर ऊँचे–नीचे पड़ने लगे हैं।

(ए)

139. एक घाट पानी पीना–(एकता और सहनशीलता होना)

राजा कृष्णदेवराय के समय शेर और बकरी एक घाट पानी पीते थे।

140. एक पंथ दो काज–(एक कार्य के साथ दूसरा कार्य भी पूरा करना)

141. एक ढेले से दो शिकार–(एक कार्य से दो उद्देश्यों की पूर्ति करना)

पुलिस दल ने बदमाशों को मारकर एक ढेले से दो शिकार किए। उन्हें पदोन्नति मिली और पुरस्कार भी मिला।

आगरा में मेरी परीक्षा है, इस बहाने ताजमहल भी देख लेंगे। चलो मेरे तो एक पंथ दो काज हो जाएंगे।

142. एड़ी–चोटी का पसीना एक करना–(घोर परिश्रम करना)

रिक्शे वाले एड़ी–चोटी पसीना एक कर रोजी कमाते हैं।

143. एक–एक नस पहचानना–(सब कुछ समझना)

मालिक और नौकर एक–दूसरे की एक–एक नस पहचानते हैं।

145. एक ही लकड़ी से हाँकना–(अच्छे–बुरे की पहचान न करना)

कुछ अधिकारी सभी कर्मचारियों को एक ही लकड़ी से हाँकते हैं।

146. एक ही थैली के चट्टे–बट्टे होना–(सभी का एक जैसा होना)

आजकल के सभी नेता एक ही थैली के चट्टे–बट्टे हैं।

147. एक की चार लगाना–(छोटी बातों को बढ़ाकर कहना)

रमेश तुम तो अब हर बात में एक की चार लगाते हो।

148. एक आँख से देखना–(सबको बराबर समझना)

राजा का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को एक आँख से देखे।

149. एक और एक ग्यारह होते हैं–(संघ में बड़ी शक्ति है)

भाइयों को आपस में लड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि एक और एक ग्यारह होते हैं।

150. एक म्यान में दो तलवारें–(एक वस्तु या पद पर दो शक्तिशाली

व्यक्तियों का अधिकार नहीं हो सकता) विद्यालय की प्रबन्ध–समिति ने दो–दो प्रधानाचार्यों की नियुक्ति करके एक म्यान में दो तलवारों वाली बात कर दी है।

151. ऐबों पर परंदा डालना–(अवगुण छुपाना)

प्राय: लोग झूठ–सच बोलकर अपने ऐबों पर परदा डाल लेते हैं।

152. ऐसी–तैसी करना–(दुर्दशा करना)

“भीमा मुझे बचा लो, वरना वह मेरी ऐसी–तैसी कर देगा।” लल्लूराम ने भीमा के पास जाकर गुहार की।

(ओ)

153. ओले पड़ना–(विपत्ति आना)

देश में पहले भूकम्प आया फिर अनावृष्टि हुई; अब आवृष्टि हो रही है। सच में अब तो चारों ओर से सिर पर ओले ही पड़ रहे हैं।

154. ओखली में सिर देना–(जानबूझकर अपने को जोखिम में डालना)

“अपने से चार गुना ताकतवर व्यक्ति से उलझने का मतलब है, ओखली में सिर देना, समझे प्यारे।” राजू ने रामू को समझाते हुए कहा।

155. ओस पड़ जाना–(लज्जित होना)

ऑस्ट्रेलिया से एक दिवसीय श्रृंखला बुरी तरह हारने से भारतीय टीम पर ओस पड़ गई।

(औ)

156. औकात पहचानना–(यह जानना कि किसमें कितनी सामर्थ्य है)

“हमारे अधिकारी तुम जैसे नेताओं की औकात पहचानते हैं। चलिए, बाहर निकलिए।” चपरासी ने छोटे नेताओं को ऑफिस से भगाते हुए कहा।

157. और का और हो जाना–(पहले जैसा ना रहना, बिल्कुल बदल जाना)

विमाता के घर आते ही अनिल के पिताजी और के और हो गए।

158. औंधे मुँह गिरना–(पराजित होना)

आज अखाड़े में एक पहलवान ने दूसरे पहलवान को ऐसा दाँव मारा कि वह औंधे मुँह गिर गया।

159. औंधी खोपड़ी–(मूर्खता)

वह तो औंधी खोपड़ी है उसकी बात का क्या विश्वास।

(क)

160. काम तमाम करना–(मार डालना)

भीम ने दुर्योधन का काम तमाम कर दिया।

161. कली खिलना–(खुश होना)

बहुत पुराने मित्र आपस में मिले तो कली खिल गई।

162. कलेजा मुँह को आना–(दुःख होना)

घायल की चीत्कार सुनकर कलेजा मुँह को आता हैं।

163. कंधे से कंधा छिलना–(भारी भीड़ होना)

दशहरा के त्योहार पर लगे मेले में इतनी भीड़ थी कि लोगों के कंधे–से–कंधे छिल गए।

164. कीचड़ उछालना–(बदनाम करना)

नेताओं का कार्य एक–दूसरे पर कीचड़ उछालना रह गया है।

165. कंधा देना–(अर्थी को कंधे पर उठाकर अन्तिम संस्कार के लिए श्मशान ले जाना)

नगर के मेयर की अर्थी को सभी नागरिकों ने कंधा दिया।

166. कंचन बरसना–(अधिक आमदनी होना)

आजकल मुनाफाखोरों के यहाँ कंचन बरस रहा है।

167. कुठाराघात करना–(तीव्र या ज़ोरदार प्रहार करना)

धर्मवीर ने अपने शत्रु पर इतना ज़ोरदार कुठाराघात किया कि वह एक ही बार में बेहोश हो गया।

168. कूच का डंका बजना–(सेना का युद्ध के लिए निकलना)

सेनापति ने जिस समय कूच का डंका बजाया, तो सैनिक युद्ध स्थल की तरफ़ दौड़ गए।

169. कोल्हू का बैल होना–(निरन्तर काम में लगे रहना)

भाई साहब थोड़ा–बहुत आराम भी कर लिया करो, आप तो कोल्हू का बैल हो रहे हैं।

170. कलेजा धक से रह जाना–(डर जाना)

जंगल से गुजरते वक्त शेर को देखकर मेरा कलेजा धक से रह गया।

171. कलेजे पर साँप लोटना–(ईर्ष्या से कुढ़ना)

भारतवर्ष की उन्नति देखकर चीन के कलेजे पर साँप लोटता है।

172. कान भरना–(चुगली करना)

मंथरा ने कैकेई के कान भरे थे।

173. कान का कच्चा–(किसी भी बात पर विश्वास कर लेना)

जहाँ अधिकारी कान का कच्चा होता है वहाँ सीधे, सरल, ईमानदार कर्मचारियों को परेशानी होती है।

174. कच्ची गोली खेलना–अनुभवहीन होना।

तुम हमें नहीं ठग सकते, हमने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं।

175. कलेजा ठण्डा होना–(मन को शान्ति मिलना)

आशीष इन्जीनियर बन गया, माँ का कलेजा ठण्डा हो गया।

176. कौए उड़ाना–(बेकार के काम करना)

“जब से नौकरी छूटी है हम तो कौए उड़ाने लगे।” सुमित ने अपने एक मित्र से अफसोस जाहिर करते हुए कहा।

177. कंगाली में आटा गीला–(अभाव में भी अभाव)

रतन के पास इस समय पैसा नहीं है, मकान के टैक्स ने उसका कंगाली में आटा गीला कर दिया है।

178. कसर लगना–(हानि या क्षति होना)

सेठ जी के पूछने पर उनके मुंशी ने बताया कि इस सौदे में उनको दस लाख रुपए की कसर लग गई।

179. कमर कसना–(तैयार होना)

अरुण ने पी. सी. एस. परीक्षा के लिए कमर कस ली है।

180. कलई खुलना–(भेद खुलना या रहस्य प्रकट होना)

रामू ने जब मुन्ना की कलई खोल दी, तो उसका चेहरा फीका पड़ गया।

181. किला फ़तेह करना–(विजय पाना/विकट या कठिन कार्य पूरा कर डालना)

निशानेबाजी की प्रतियोगिता में विजयी होकर अरविन्द ने किला फ़तेह करने जैसी मिसाल कायम की।

182. किस्सा खड़ा करना–(कहानी गढ़ना)

स्मिथ और कविता शुरू में इसलिए कम मिला करते थे कि कहीं लोग उन्हें एक साथ देखकर कोई किस्सा न खड़ा कर दें।

183. कील काँटे से लैस–(पूरी तरह तैयार)

एवरेस्ट पर चढ़ने वाला भारतीय दल पूरी तरह से कील काँटे से लैस था।

184. कढ़ी का सा उबाल–(मामूली जोश)

उत्सवों पर उत्साह कढ़ी का सा उबाल बनकर रह गया है।

185. कसौटी पर कसना–(परखना)

श्याम परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरा।

186. कहते न बनना–(वर्णन न कर पाना)

“मुझे सुधीर की बीमारी का इतना दुःख है कि मुझसे कहते नहीं बन पा रहा है।” राधा ने अपनी सहेली को बताया।

187. कलम का धनी–(अच्छा लेखक)

प्रेमचन्द कलम के धनी थे।

188. कलेजे का टुकड़ा–(बहुत प्यारा)

सार्थक मेरे कलेजे का टुकड़ा है।

189. किताब का कीड़ा–(हर समय पढ़ाई में लगा रहने वाला)

एकाग्रता के अभाव में किताबी कीड़े भी परीक्षा में असफल हो जाते हैं।

190. किराए का टटू होना–(कम मजदूरी वाला अयोग्य व्यक्ति)

सेठ बनारसीदास का नौकर उनके लिए हमेशा किराए का टटू साबित होता है, क्योंकि वह बस उतना ही कार्य करता है, जितना कहा जाता है।

191. कान में तेल डालना–(चुप्पी साधकर बैठे रहना)

राजेश से किसी बात को कहने का क्या लाभ; वह तो कान में तेल डाले बैठा रहता है।

192. किए कराए पर पानी फेरना–(बिगाड़ देना)

औरंगजेब ने मराठों से उलझकर अपने किए कराए पर पानी फेर दिया।

193. कान खड़े होना–(आशंका या खटका होने पर चौकन्ना होना)

आधी रात के समय कुत्तों को भौंकता देखकर, चौकीदार के कान खड़े हो गए।

194. कान खाना/खा जाना–(ज़्यादा बातें करके कष्ट पहुँचाना)

तुम्हारे मोहल्ले के बच्चे तो बड़े बदतमीज़ हैं, इतना शोरगुल करते हैं कि कान खा जाते हैं।

195. कट जाना–(अलग होना)

मेरी कड़वी बातें सुनकर वह मुझसे कट गया।

196. कदम उखड़ना–(भाग खड़े होना)

कारगिल में बोफोर्स तोपों की मार से शत्रु के पैर उखड़ गए।

197. कालिख पोतना–(बदनामी करना)

“पर पुरुष से प्रेम करके उसने मुँह पर कालिख पोत ली।”

198. कागज काले करना–(अनावश्यक लिखना)

प्रश्न का उपयुक्त उत्तर दीजिए, कागज काले करने से क्या लाभ?

199. काठ मार जाना–(स्तब्ध रह जाना)

टी. टी. के अन्दर घुसते ही बिना टिकट यात्रियों को काठ मार गया।

200. कान काटना–(पराजित करना)

रमेश अपने वाक्चातुर्य से अनेक लोगों के कान काट चुका है।

201. कागजी घोड़े दौड़ाना–(केवल लिखा–पढ़ी करते रहना)

नौकरी चाहिए तो पहले अच्छी पढ़ाई करो। यों ही घर बैठे कागजी घोड़े दौड़ाने से कोई बात नहीं बनने वाली।

202. कान पर जूं तक न रेंगना–(बिलकुल ध्यान न देना)

दुष्ट व्यक्ति को चाहे जितना समझाओ, उसके कान पर तक नहीं रेंगती।

203. कुत्ते की दुम–(वैसे का वैसा)

वह तो कुत्ते की दुम है, कभी सीधा नहीं होगा।

204. कुएँ में ही भाँग पड़ना–(सभी लोगों की मति भ्रष्ट होना)

दंगों में तो लगता है, कुएँ में ही भाँग पड़ जाती है।

205. कौड़ी के मोल–(व्यर्थ होकर रह जाना)

अब भी समय है, आँखे खोलो अन्यथा कौड़ी के मोल बिकोगे।

206. काले कोसों–(बहुत दूर)

लड़के की नौकरी काले कोसों दूर लगी है, उसका आना भी नहीं होता।

207. कुत्ते की मौत मरना–(बुरी मौत मरना)

कुपथ पर चलने वाले कुत्ते की मौत मरते हैं।

208. कलम तोड़ देना/कर रख देना–(प्रभावपूर्ण लेखन करना)

वायसराय ने कहा, महादेव लेखन में कलम तोड़ देते हैं।

209. कान कतरना–(अधिक होशियार हो जाना)

राम चालाकी में बड़े–बड़ों के कान कतरता है।

210. काफूर होना–(गायब हो जाना)

पेन किलर लेते ही मेरा दर्द काफूर हो गया।

211. कुआँ खोदना–(हानि पहुँचाना)

जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है, वह स्वयं उसी में गिरता है।

212. कूच कर जाना–(चले जाना)

सेना 12 बजे कूच कर गई।

213. कौड़ी–कौड़ी पर जान देना–(कंजूस होना)

लाला रामप्रकाश कौड़ी–कौड़ी पर जान देता है, उससे मदद की आशा मत करो।

214. काँटों पर लेटना–(बेचैन होना)

दुर्घटनाग्रस्त पुत्र जब तक घर नहीं आया, तब तक पूरा परिवार काँटों पर लोटता रहा।

215. काँटा दूर होना–(बाधा दूर होना)

राजीव के दूसरे प्रकाशन में जाने से बहुतों के रास्ते का काँटा दूर हो गया।

216. काला नाग–(खोटा या घातक व्यक्ति)

मुकेश से बचकर रहना, वह तो काला नाग है।

217. किरकिरा हो जाना–(विघ्न पड़ना)

कुछ लोगों द्वारा शराब पीकर हुड़दंग मचाने से पिकनिक का मजा किरकिरा हो गया।

218. काया पलट जाना–(और ही रूप हो जाना)

पिछले कुछ वर्षों में मेरठ की काया ही पलट गई है।

219. काटने दौड़ना–(चिड़चिड़ाना/क्रोध करना)

विनीता बहुत कमजोर हो गई है। जरा–जरा सी बात पर काटने को दौड़ती है।

220. कान गरम करना–(दण्ड देना)

शरारती बच्चों के तो कान गरम करने पड़ते हैं।

221. कान में डाल देना–(सुना देना या अवगत कराना)

विनय ने लड़की के बाप के कान में डाल दिया कि वह मोटर साइकिल लेना चाहता है।

222. काजल की कोठरी–(कलंक लगने का स्थान)

मेरठ में कबाड़ी बाज़ार रेड लाइट एरिया काजल की कोठरी है, उधर जाने’ से बदनामी होगी।

223. कूप मण्डूक–(सीमित ज्ञान)

झोला छाप डॉक्टरों पर अधिक विश्वास मत करो, ये तो कूप मण्डूक होते हैं।

224. किस्मत फूटना–(बुरे दिन आना)

सीता का हरण करके तो रावण की किस्मत ही फूट गई।

225. कच्चा चिट्ठा खोलना–(सब भेद खोल देना)

घोटाले में अपना हिस्सा न पाने पर सह–अभियुक्त ने पुलिस के सामने सारे राज उगल दिए थे।

226. कब्र में पाँव लटकना–(वृद्ध या जर्जर हो जाना/मरने के करीब होना)

“सुनीता के ससुर की आयु काफ़ी हो गई है। अब तो उनके कब्र में पाँव लटक गए हैं।” सोनी ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहा।

227. कलेजे पर पत्थर रखना–(धैर्य धारण करना)

गरीब और कमजोर श्यामा को गाँव का चौधरी सबके सामने खरी–खोटी सुना गया, जिसको उसने कलेजे पर पत्थर रखकर सुना लिया।

(ख)

228. खिचड़ी पकाना–(गुप्त मन्त्रणा करना)

राजनीति में कौन किसका दोस्त और कौन किसका दुश्मन है; अन्दर ही अन्दर एक–दूसरे के विरुद्ध खिचड़ी पकती रहती है।

229. खीरा–ककड़ी समझना–(दुर्बल और तुच्छ समझना)

“रणभूमि में अपने दुश्मन को हमेशा खीरा–ककड़ी समझकर उस पर टूट पड़ना चाहिए।” कमाण्डर अपने सैनिकों को समझा रहे थे।

230. खून सफेद हो जाना–(दया न रह जाना)

उस पर अनेक हत्या, अपहरण जैसे अभियोग हैं, उसे जघन्य कृत्य करने में संकोच नहीं है, क्योंकि उसका खून सफेद हो गया है।

231. खूटे के बल कूदना–(कोई सहारा मिलने पर अकड़ना)

छोटे–मोटे गुण्डे किसी खूटे के बल ही कूदते हैं।

232. खरी–खोटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)

परीक्षा में फेल होने पर रमेश को खरी–खोटी सुननी पड़ी।

233. ख्याली पुलाव पकाना–(कल्पनाएँ करना)

मूर्ख व्यक्ति ही सदैव ख्याली पुलाव पकाते हैं, क्योंकि वे कुछ करने से पहले ही अपने ख्यालों में खो जाते हैं।

235. खाल उधेड़ना–(कड़ा दण्ड देना)

यदि तुमने फिर चोरी की तो खाल उधेड़ दूंगा।

236. खून के चूंट पीना–(बुरी लगने वाली बात को सह लेना)

ससुराल में अपने घरवालों के विषय में आपत्तिजनक बातें सुनकर राधिका खून के चूंट पीकर रह गयी थी।

237. खून पीना–(तंग करना/मार डालना)

साहूकार ने तो किसानों का खून पी लिया है।

238. खाक छानना–(दर–दर भटकना)

आज के युग में अच्छे–अच्छे लोग बेरोज़गारी के कारण खाक छान रहे हैं।

239. खालाजी का घर–(जहाँ मनमानी चले)

मनमानी करने की आदत छोड़ दो क्योंकि यहाँ के कुछ नियम–कानून हैं, इसे ‘खालाजी का घर’ मत बनाओ।

240. खरा खेल फर्रुखाबादी–(निष्कपट व्यवहार)

राजीव तो सभी से खरा खेल फर्रुखाबादी खेलता है।

241. खुले हाथ–(उदारता से)

बहुत से धनी लोग खुले हाथ से दान देते हैं।

242. खून खुश्क होना–(भयभीत होना)

सेना को देख आतंकवादियों का भय से खून खुश्क हो जाता है।

243. खून–पसीना एक करना–(कठिन परिश्रम करना)

हमारे किसान खून–पसीना एक करके अन्न पैदा करते हैं।

244. खेल–खेल में–(आसानी से)

आजकल लोग खेल–खेल में एम. ए. पास कर लेते हैं।

245. खून खौलना–(गुस्सा चढ़ना)

कारगिल पर पाकिस्तान के कब्जे से भारतीय सैनिकों का खून खौल उठा।

246. खून सवार होना–(किसी को मार डालने के लिए उद्यत होना)

रमेश के सिर पर खून सवार हो गया जब उसने देखा कि कुछ लड़के उसके भाई को मार रहे थे।

247. खेत रहना–(युद्ध में मारा जाना)

“कारगिल युद्ध में ‘बी फॉर यू’ टुकड़ी के केवल दो सैनिक ही खेत रहे थे।’ टुकड़ी के कमाण्डर ने अपने अधिकारी को बताया।

248. खोपड़ी को मान जाना–(बुद्धि का लोहा मानना)

सभी विरोधी दल श्री नरेन्द्र मोदी की खोपड़ी को मान गए।

(ग)

249. गोल कर जाना–(गायब कर देना)

चालाक व्यक्ति सही बातों का उत्तर गोल कर जाते हैं।

250. गढ़ जीतना–(कठिन कार्य पूरा होना)

मनोज का पी. सी. एस. में चयन हो गया, समझो उसने गढ़ जीत लिया।

251. गूलर का फूल–(असम्भव बात/अदृश्य होना)

आजकल बाजार में शुद्ध देशी घी मिलना गूलर का फूल हो गया है।

252. गाँठ बाँधना–(याद रखना)

यह मेरी बात गाँठ बाँध लो, जो परिश्रम करेगा, वही सफलता प्राप्त करेगा।

253. गुस्सा पी जाना–(क्रोध रोकना)

व्यापारी गुस्सा पीना भली–भाँति जानता है।

254. गुदड़ी का लाल–(असुविधाओं में उन्नत होने वाला)

डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम गुदड़ी के लाल थे।

255. गले का हार होना–(अत्यन्त प्रिय होना)

तुलसीदास द्वारा कृत रामचरितमानस जनता के गले का हार है।

256. गड़े मुर्दे उखाड़ना–(पुरानी बातों पर प्रकाश डालना)

आजकल पाकिस्तान गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रहा है, मगर भारत बड़े सब्र से काम ले रहा है।

257. गीदड़–भभकी–(दिखावटी क्रोध)

हम उसे अच्छी तरह जानते हैं, हम उसकी गीदड़ भभकियों से डरने वाले नहीं हैं।

258. गागर में सागर भरना–(थोड़े में बहुत कुछ कहना)

बिहारी जी ने बिहारी सतसई में गागर में सागर भर दिया है।

259. गाल बजाना–(डींग हाँकना)।

तुम्हारे पास धेला नहीं, पता नहीं क्यों गाल बजाते फिरते हो।

260. गिरगिट की तरह रंग बदलना–(किसी बात पर स्थिर न रहना)

राजनीति में लोग गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं।

261. गुस्सा नाक पर रहना–(जल्दी क्रोधित हो जाना)

“जब से मीना की शादी हुई है तब से तो उसकी नाक पर ही गुस्सा रहने लगा।” मीना की सहेलियाँ आपस में बातें कर रही थीं।

262. गोबर गणेश–(बुद्ध)

आज के युग में गोबर गणेश लोगों की गुंजाइश नहीं है।

263. गाल फुलाना–(रूठना)

बच्चों को पढ़ाई करने को कहो, तो गाल फुला लेते हैं।

(घ)

264. घाट–घाट का पानी पीना–(बहुत अनुभव प्राप्त करना)

मुझसे चाल मत चलो, मैं घाट–घाट का पानी पी चुका हूँ।

265. घड़ों पानी पड़ना–(बहुत लज्जित होना)

कल्लू बहुत अकड़ रहा था, साहब के डाँटने पर उस पर घड़ों पानी पड़ गया।

266. घर फूंक तमाशा देखना–(अपना नुकसान करके आनन्द मनाना)

घर फूंक तमाशा देखने वालों को कष्ट उठाना पड़ता है।

267. घाव पर नमक छिड़कना–(दुःखी को और दुःखी करना)

रामू अस्वस्थ तो था ही, परीक्षा में असफलता की सूचना ने घाव पर नमक छिड़क दिया।

268. घी के दीए जलाना–(खुशियाँ मनाना)

पृथ्वीराज की मृत्यु सुनकर जयचन्द ने घी के दीए जलाए।

269. घोड़े बेचकर सोना–(निश्चिन्त होकर सोना)

परीक्षा के बाद सभी छात्र कुछ दिन घोड़े बेचकर सोते हैं।

270. घर काटे खाना–(मन न लगना/सूनापन अखरना)

भूकम्प में उसका सर्वनाश हो चुका था, अब तो अभागे को घर काटे खाता है।

271. घाव हरा करना–(भूले दुःख की याद दिलाना)

मेरे अतीत को छेडकर तमने मेरा घाव हरा कर दिया।

272. घुटने टेकना–(अपनी हार/असमर्थता स्वीकार करना)

भारतीय क्रिकेट टीम के समक्ष टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया ने घुटने टेक दिए।

273. घास छीलना–(व्यर्थ समय बिताना)

हमने पढ़कर परीक्षा उत्तीर्ण की है, घास नहीं खोदी है।

274. घात लगाना–(ताक में रहना/उचित अवसर की प्रतीक्षा में रहना)

पुलिस के हटते ही उपद्रवियों ने घात लगाकर दुर्घटना करने वाली बस पर हमला कर दिया।

275. घिग्घी बँधना–(डर के कारण बोल न पाना)

पुलिस के सामने चोर की घिग्घी बँध गई।

276. घोड़े पर चढ़े आना–(उतावली में होना)

जब आते हो घोड़े पर चढ़े आते हो, थोड़ा सब्र करो, सौदा मिलेगा।

277. घट में बसना–(मन में बसना)

ईश्वर तो प्रत्येक व्यक्ति के घट में बसता है।

278. घोड़े दौड़ाना–(अत्यधिक कोशिश करना)

माया ने निहाल से दुश्मनी लेकर अपने खूब घोड़े दौड़ा लिए, लेकिन वह अभी तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी।

279. घी खिचड़ी होना–(खूब मिल–जुल जाना)

रिश्तेदारों को घी खिचड़ी होकर रहना चाहिए।

280. घर में गंगा बहना–(अनायास लाभ प्राप्त होना)

मनोज के पास पाँच भैंसे हैं, दूध की कोई कमी नहीं, घर में गंगा बहती है।

281. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना–(आश्चर्य)

रिश्वत लेते पकड़े जाने पर सिपाही के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

282. चूड़ियाँ पहनना–(कायर होना)।

चूड़ियाँ पहनकर बैठने से काम नहीं चलेगा, कुछ बदलने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।

283. चित्त पर चढ़ना–(सदा स्मरण रहना)

अनुज का दिमाग बहुत तेज है, उसके चित्त पर जो बात चढ़ जाती है, फिर वह उसे कभी नहीं भूलता।

284. चादर से बाहर पाँव पसारना–(सीमा के बाहर जाना)

चादर से बाहर पैर पसारने वाले लोग कष्ट उठाते हैं।

285. चक जमाना–(पूरी तरह से अधिकार या प्रभुत्व स्थापित होना)

चन्द्रगुप्त मौर्य ने सम्पूर्ण आर्यावर्त पर चक जमा लिया था।

286. चाँदी का जूता मारना–(रिश्वत या घूस देना)

आजकल सरकारी कार्यालयों में बिना चाँदी का जूता मारे काम नहीं हो पाता है।

287. चाँद पर थूकना–(भले व्यक्ति पर लांछन लगाना)

महात्मा गाँधी की बुराई करना चाँद पर थूकना है।

288. चंगुल में फँसना–(मीठी–मीठी बातों से वश में करना)

आजकल बाबा लोग सीधे–सादे लोगों को चंगुल में फँसा लेते हैं।

289. चाँद खुजलाना–(पिटने की इच्छा होना)

विनय तुम सुबह से शरारत कर रहे हो, लगता है तुम्हारी चाँद खुजला रही है।

290. चार दिन की चाँदनी–(कम दिनों का सुख)

दीपावली में खूब बिक्री हो रही है, दुकानदारों की तो चार दिन की चाँदनी है।

291. चचा बनाकर छोड़ना–(खूब मरम्मत करना)

ग्रामीणों ने चोर को चचा बनाकर छोड़ा।

292. चिराग तले अँधेरा–(अपना दोष स्वयं दिखाई नहीं देता)

शाकाहार का उपदेश देते हो और घर में मांसाहारी भोजन बनता है, सच है चिराग तले अँधेरा।

293. चोर की दाढ़ी में तिनका–(अपराधी सदैव सशंक रहता है)

अपराधी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के मन में हमेशा एक खटका बना रहता है मानो “चोर की दाढ़ी में तिनका’ हो।

294. चार चाँद लगना–(शोभा बढ़ जाना)

किसी पार्टी में ऐश्वर्य राय के पहुँच जाने से पार्टी में चार चाँद लग जाते हैं।

295. चोली दामन का साथ–(अत्यन्त निकटता)

पुलिस और पत्रकारों का तो चोली दामन का साथ है।

296. चेरी बनाना/बना लेना–(दास या गुलाम बना लेना)

“हमारे गाँव का प्रधान इतना शातिर दिमाग का है कि वह सभी जरूरतमन्द लोगों को चेरी बना लेता है।

297. चूना लगाना–(धोखा देना)

प्राय: विश्वासपात्र लोग ही चूना लगाते हैं।

298. चैन की बंशी बजाना–(मौज़ करना)

जो लोग कम ही उम्र में काफी धन अर्जित कर लेते हैं, वे बाकी की ज़िन्दगी चैन की बंशी बजा सकते हैं।

299. चल बसना–(मर जाना)

लम्बी बीमारी के पश्चात् बाबा जी चल बसे !

300. चींटी के पर निकलना–(मरने के दिन निकट आना)

आजकल संजीव पुलिस से भिड़ने लगा है, लगता है चींटी के पर निकल आए हैं।

301. चुल्लू भर पानी में डूब मरना–(शर्म के मारे मुँह न दिखाना)

आप इतने सभ्य परिवार के होते हुए भी दुष्कर्म करते हैं, आपको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।

302. चूलें ढीली करना–(अधिक परिश्रम के कारण बहुत थकावट होना)

इस लेखन कार्य ने तो मेरी चूलें ही ढीली कर दीं।

303. चारपाई से लगना–(बीमारी से उठ न पाना)

ध्रुव की दुर्घटना क्या हुई, वह तो चारपाई से ही लग गया।

304. चण्डाल चौकड़ी–(निकम्मे बदमाश लोग)

राजनीति में प्राय: चण्डाल चौकड़ी नेता को घेरे रहती है।

(छ)

305. छक्के छूटना–(हिम्मत हारना)

आन्दोलनकारियों ने अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए।

306. छूमन्तर होना–(गायब हो जाना)

मेरा पर्स यहीं रखा था, पता नहीं कहाँ छूमन्तर हो गया।

307. छक्के छुड़ाना–(हिम्मत पस्त करना)

भारतीय खिलाड़ियों ने विपक्षी टीम के छक्के छुड़ा दिए।

308. छप्पर फाड़कर देना–(अनायास ही धन की प्राप्ति)

ईश्वर किसी–किसी को छप्पर फाड़कर देता है।

309. छाती पर मूंग दलना–(निरन्तर दुःख देना)

वह कई वर्षों से घर में निठल्ला बैठकर अपने पिताजी की छाती पर – मूंग दल रहा है।

310. छाती भर आना–(दिल पसीजना)

दुर्घटनाग्रस्त सोहन को मृत्यु–शैय्या पर तड़पते देखकर उसके मित्र चिंटू की छाती भर आई।

311. छक्का –पंजा भूलना–(कुछ भी याद न रहना)

अधिकारी को देखते ही कर्मचारी छक्के–पंजे भूल गए।

312. छाती ठोंकना–(साहस दिखाना)

अन्याय के खिलाफ़ छाती ठोंककर खड़े होने वाले कितने लोग होते हैं।

313. छाँह न छूने देना–(पास तक न आने देना)

मैं बुरे आदमी को अपनी छाँह तक छूने नहीं देता।

314. छठी का दूध याद दिलाना–(संकट में डाल देना)

भारतीयों ने, पाकिस्तानी सेना को छठी का दूध याद दिला दिया।

(ज)

315. जलती आग में घी डालना–(क्रोध भड़काना)

धनुष टूटा देखकर परशुराम क्रोधित थे ही कि लक्ष्मण की बातों ने जलती आग में घी डालने का काम कर दिया।

316. जड़ जमना–(अच्छी तरह प्रतिष्ठित या प्रस्थापित होना)

अब तो नेता ने पार्टी में अपनी जड़ें जमा ली हैं। पार्टी उन्हें इस बार उच्च पद पर नियुक्त करेगी।

317. जान के लाले पड़ना–(जान पर संकट आ जाना)

नौकरी छूटने से उसके तो जान के लाले पड़ गए।

318. जबान कैंची की तरह चलना–(बढ़–चढ़कर तीखी बातें करना)

कर्कशा की जबान कैंची की तरह चलती है।

319. जी भर आना–(दुःखी होना)

संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर मेरा जी भर आया।

320. जहर उगलना–(कड़वी बातें करना)

तुम जहर उगलकर किसी से अपना कार्य नहीं करा सकते।

321. ज़मीन पर पैर न रखना–(अकड़कर चलना)

जब से राजेश नायब तहसीलदार हुआ, वह ज़मीन पर पैर नहीं रखता।

322. जोड़–तोड़ करना–(उपाय करना)

अब तो जोड़–तोड़ की राजनीति करने वालों की कमी नहीं है।

323. जी खट्टा होना–(विरत होना)

पुत्र के व्यवहार से पिता का जी खट्टा हो गया।

324. जामे से बाहर होना–(अति क्रोधित होना)

राजेश को यदि सरकण्डा कहो तो वह जामे से बाहर हो जाता है।

325. जिगरी दोस्त–(घनिष्ठ मित्र)

राम और श्याम जिगरी दोस्त हैं।

326. जीती मक्खी निगलना–(जान बूझकर अन्याय सहना)

आप जैसे समझदार को जीती मक्खी निगलना शोभा नहीं देता।

327. जी चुराना–(किसी काम या परिश्रम से बचने की चेष्टा करना)

पढ़ने–लिखने से मैंने एक दिन के लिए भी कभी जी नहीं चुराया।

328. ज़िन्दगी के दिन पूरे करना–(कठिनाई में समय बिताना)।

आज के युग में किसान और मज़दूर अपनी ज़िन्दगी के दिन पूरे कर रहे हैं।

329. ज़हर की पुड़िया–(मुसीबत की जड़)

उसकी बातों पर मत जाना, वह तो ज़हर की पुड़िया है।

330. जोंक होकर लिपटना–(बुरी तरह पीछे पड़ना)

किसान के ऊपर साहूकार का ऋण जोंक की तरह लिपट जाता है।

331. जबान में लगाम न होना–(बिना सोचे समझे बिना लिहाज के बातें करना)

मनोहर इतना असभ्य है कि उसकी जबान में लगाम ही नहीं है।

332. जान हथेली पर रखना–(प्राणों की परवाह न करना)

सेना के जवान जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करते हैं।

333. जितने मुँह उतनी बातें–(एक ही विषय पर अनेक मत होना)

ताजमहल के सौन्दर्य के विषय में जितनी मुँह उतनी बातें हैं।

334. जान में जान आना–(चैन मिलना)

खोया हुआ बेटा मिला तो माँ की जान में जान आई।

335. जहर का चूँट पीना–(कड़ी और कड़वी बात सुनकर भी चुप रहना)

निर्बल व्यक्ति शक्तिशाली आदमी की हर कड़वी बात को ज़हर के घूट की तरह पी जाता है।

336. जली–कटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)

रमेश का कटाक्ष सुनकर सुरेश ने उसे खूब जली–कटी सुनाई थी।

337. जूतियाँ चाटना–(चापलूसी करना)।

स्वाभिमानी व्यक्ति किसी की जूतियाँ नहीं चाटता।

338. झूमने लगना–(आनन्द–विभोर हो जाना)

ऋद्धि के भजनों को सुनकर सभागार में उपस्थित सभी लोग झूम उठे।

339. झण्डा गड़ना–(अधिकार जमाना)

दुनिया में उन्हीं लोगों के झण्डे गड़े हैं, जो अपने देश पर कुर्बान होते हैं।

340. झाँव–झाँव होना–(जोरों से कहा–सुनी होना)

इन दो गुटों के बीच झाँव–झाँव होती रहती है।

341. झाडू फिरना/फिर जाना–(नष्ट करना)

वार्षिक परीक्षा के दौरान मार्ग–दुर्घटना में घायल होने के कारण राकेश की सारी मेहनत पर झाडू फिर गयी।

342. झकझोर देना–(हिला देना/पूर्णत: त्रस्त कर देना)

पिता की मृत्यु, ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया।

(ट)

343. टोपी उछालना–(बेइज्जती करना)

तुमने अपने पिता की टोपी उछालने में कोई कमी नहीं की है।

344. टाँग अड़ाना–(व्यवधान डालना)

बहुत से लोगों को दूसरों के काम में टाँग अड़ाने की बुरी आदत होती है।

345. टिप्पस लगाना–(सिफारिश करवाना)

आजकल मामूली काम के लिए मन्त्रियों से टिप्पस लगवाए जाते हैं।

346. टूट पड़ना–(आक्रमण करना)

भारत की सेना पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़ी और उसका विनाश कर दिया।

347. टाँय–टाँय फिस होना–(काम बिगड़ जाना)

व्यावहारिक बुद्धि के अभाव से मुहम्मद तुगलक की सारी योजनाएँ टाँय–टाँय फिस हो गईं।

348. टका–सा जवाब देना–(साफ़ इनकार कर देना)

अटल जी ने अमेरिका को टका–सा जवाब दे दिया कि भारतीय सेना इराक नहीं जाएगी।

349. टाट उलटना–(दिवाला निकलना)

चाँदी की कीमत में एकाएक गिरावट आने से उसे भारी घाटा उठाना पड़ा और अन्तत: उसकी टाट ही उलट गई।

350. टेढ़ी खीर–(कठिन काम या बात)

हिमालय के शिखर पर चढ़ना टेढ़ी खीर है।

351. ठौर–ठिकाने लगना–(आश्रय मिलना)

अजनबी को किसी भी शहर में जल्दी से ठौर–ठिकाना नहीं मिलता।

352. दूंठ होना–(निष्प्राण होना).

अब तो उसका समस्त परिवार दूंठ होने पर आया है।

353. ठन–ठन गोपाल–(पैसा पास न होना)

अधिक खर्च करने वालों की हालत यह होती है कि महीने के अन्त में ठन–ठन गोपाल हो जाते हैं।

354. ठीकरा फोड़ना–(दोष लगाना)

राजनीतिक दल नाकामी का ठीकरा एक–दूसरे के सिर पर फोड़ते रहते हैं।

355. ठण्डे कलेजे से–(शान्त होकर/शान्त भाव से)

जनाब एक बार ठण्डे कलेजे से फिर सोच लीजिएगा, हमारी बात बन सकती

(ड)

356. डींग मारना–(अनावश्यक बातें कहना)

काम करने वाला व्यक्ति डींग नहीं मारता।

357. डाली देना–(अधिकारियों को प्रसन्न रखने के लिए कुछ भेंट देना)

घुसपैठिए अधिकारियों को डाली देकर ही सीमा पार कर सकते हैं।

358. डूबना–उतराना–(संशय में रहना)

अपने कमरे में अकेली पड़ी मानसी रात–भर गहरे सोच–विचार में डूबती–उतराती रही।

359. डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाना–(बहुमत से अलग रहना)

राजेश सदा अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाता है।

360. डाढ़ी पेट में होना–(छोटी उम्र में ही बहुत ज्ञान होना)

आवेश के पेट में तो डाढ़ी है।

361. डेढ़ बीता कलेजा करना–(अत्यधिक साहस दिखाना)

सेना के जवान युद्ध क्षेत्र में डेढ़ बीता कलेजा करके जाते हैं।

362. डंक मारना–(घोर कष्ट देना)

वह मित्र सच्चा मित्र कभी नहीं हो सकता, जो अपने मित्र को डंक मारता हो।

363. डंड पेलना–(निश्चिन्ततापूर्वक जीवनयापन करना)

बाप लाखों की सम्पत्ति छोड़ गए हैं, बेटा राम डंड पेल रहे हैं।

364. ढिंढोरा पीटना–(प्रचार करना)

तुम्हें कोई बात बताना ठीक नहीं, तुम तो उसका ढिंढोरा पीट दोगे।

365. ढाई दिन की बादशाहत–(थोड़े समय के लिए पूर्ण अधिकार

मिलना) जहाँदारशाह की तो ढाई दिन की बादशाहत रही थी।

366. ढंग पर चढ़ना–(प्रभाव या वश में करना)

प्रभात ने सुरेश को ऐसे चक्रव्यूह में फँसाया कि उसे ढंग पर चढ़ा दिया।

367. ढोंग रचना–(किसी को मूर्ख बनाने के लिए पाखण्ड करना)।

चतुर लोग अपना काम निकालने के लिए कई प्रकार के ढोंग रच लेते हैं।

(त)

368. तकदीर का खेल–(भाग्य में लिखी हई बात)

अमीरी–गरीबी, यह सब तकदीर का खेल है।

369. तबलची होना–(सहायक के रूप में होना)

चाटुकार और स्वार्थी कर्मचारी अपने अधिकारी के तबलची बनकर रहते

370. तुर्की–ब–तुर्की बोलना–(जैसे को तैसा)

मैं आपसे शिष्टतापूर्वक बोल रहा हूँ, यदि आप और गलत बोले तो मैं तुर्की– ब–तुर्की बोलूँगा।

371. तीन–तेरह करना–(पृथक्ता की बात करना)

पाकिस्तान में ही अलगाववादी नेता पाकिस्तान को तीन तेरह करने की बात करते हैं।

372. तालू में दाँत जमना–(विपत्ति या बुरा समय आना)

पहले मुकेश की नौकरी छूट गई फिर बीबी–बच्चे बीमार हो गए। लगता है उनके तालू में दाँत जम गए हैं।

373. तेवर चढ़ना–(गुस्सा होना)

अपने पिताजी का अपमान होते देखकर राजीव के तेवर चढ़ गए थे।

374. ताक पर रखना–(व्यर्थ समझकर दूर हटाना)

परीक्षा अब समीप है और तुमने अपनी सारी पढ़ाई ताक पर रख दी।

375. तीसमार खाँ बनना–(अपने को शूरवीर समझ बैठना)

गोपी अपने को तीसमार खाँ समझता था और जब गाँव में चोर आए, तो वह घर से बाहर नहीं निकला।

376. तारे गिनना–(रात को नींद न आना)

रघु, राजीव की प्रतीक्षा में रात–भर तारे गिनता रहा।

377. तीन–पाँच करना–(टाल–मटोल करना)

आप मुझसे तीन–पाँच मत कीजिए, जाकर प्रधानाचार्य से मिलिए।

388. तालू से जीभ न लगना–(बोलते रहना)

शीला की तो तालू से जीभ ही नहीं लगती हर समय बोलती ही रहती है।

389. तलवे चाटना–(खुशामद करना)

चुनाव की घोषणा होते ही चन्दा पाने के लिए राजनीतिक दल के नेता पूँजीपतियों के तलवे चाटने लगते हैं।

390. तिल का ताड़ बनाना–(किसी बात को बढ़ा–चढ़ाकर कहना)

सुरेश हमेशा हर बात का तिल का ताड़ बनाया करता है।

391. तार–तार होना–(पूरी तरह फट जाना)

तुम्हारी कमीज तार–तार हो गई है, अब तो इसे पहनना छोड़ दो।

392. तेली का बैल–(हर समय काम में लगे रहना)

अनिल तो तेली के बैल की तरह काम करता रहता है।

393. तंग आ जाना–(परेशान हो जाना)

उनकी रोज़–रोज़ की किलकिल से तो मैं तंग आ गया हूँ।

(थ)

394. थूककर चाटना–(कही हुई बात से मुकर जाना)।

कल्याण सिंह ने थूककर चाट लिया और भाजपा में पुनः प्रवेश कर लिया।

395. थाह लेना–(किसी गुप्त बात का भेद जानना)

शर्मा जी की थाह लेना आसान नहीं है, वे बहुत गहरे इनसान हैं।

396. थाली का बैंगन–(ढुलमुल विचारों वाला/सिद्धान्तहीन व्यक्ति)

सूरज थाली का बैंगन है, उससे हमेशा बचकर रहना।

397. थुड़ी–थुड़ी होना–(बदनामी होना)

शेरसिंह के दुराचार के कारण पूरे गाँव में उसकी थुड़ी–थुड़ी हो गई।

398. थैली का मुँह खोलना–(खुले दिल से व्यय करना)

बेटी के विवाह में सुलेखा ने थैली का मुँह खोल दिया था।

(द)

399. दुम दबाकर भागना–(डरकर कुत्ते की भाँति भागना)

पुलिस के आने पर चोर दुम दबाकर भाग गए।

400. दाँत खट्टे करना–(पराजित करना)

भारत ने आस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के टेस्ट सीरीज में दाँत खट्टे कर दिए।

401. दिल भर आना–(शोकाकुल होना या भावुक होना)

संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर दिल भर आया

402. दूध के दाँत न टूटना–(ज्ञान व अनुभव न होना)

अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे हैं और चले हो बड़े–बड़े काम करने।

403. दूध का धुला होना–(बहुत पवित्र होना)

तुम भी दूध के धुले नहीं हो, जो मुझ पर दोष लगा रहे हो।

404. दाँत काटी रोटी–(घनिष्ठ मित्रता)

किसी समय मेरी उससे दाँत काटी रोटी थी।

405. दिमाग दिखाना–(अहम् भाव प्रदर्शित करना)

“क्या बताऊँ दोस्त, लड़के वाले तो आजकल बड़े दिमाग दिखा रहे हैं।” अपने एक मित्र के पूछने पर दिलावर ने बताया।

406. दिन दूनी रात चौगुनी होना–(बहुत शीघ्र उन्नति करना)

अरिहन्त प्रकाशन दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

407. दाना पानी उठना–(जगह छोड़ना)

विकास की तबदीली हो गई है, यहाँ से उसका दाना पानी उठ गया है।

408. दिल का गुबार निकालना–(मन की बात कह देना)

अजय ने सुनील को बुरा–भला कहा जिससे उसके दिल का गुबार निकल

गया।

409. दो दिन का मेहमान –(जल्दी मरने वाला)

उसकी दादी बहुत बीमार हैं, लगता है बस दो दिन की मेहमान हैं।

410. दिल में फफोले पड़ना–(अत्यन्त कष्ट होना)

रमेश के पुन: अनुत्तीर्ण होने पर उसके दिल में फफोले पड़ गए हैं।

411. दाल जूतियों में बँटना–(अनबन होना)

पड़ोसी से पहले जैन साहब की घुटती थी, बच्चों में लड़ाई हो गई, तो अब दाल जूतियों में बँटने लगी।

412. दिन पहाड़ होना–(कार्य के अभाव में समय गुजारना)

जून के महीने में दिन पहाड़ हो जाते हैं।

413. दाहिना हाथ–(बहुत बड़ा सहायक होना)

अमर सिंह मुलायम सिंह का दाहिना हाथ था।

414. दाँत पीसकर रह जाना–(क्रोध रोक लेना)

चीन के खिलाफ अमेरिका दाँत पीसकर रह जाता है।

415. दाँतों तले उँगली दबाना–(आश्चर्यचकित होना)

शिवाजी की वीरता देखकर औरंगजेब ने दाँतों तले उँगली दबा ली।

416. दाल में काला होना–(संदेह होना)

राम और श्याम को एकान्त में देखकर मैंने समझ लिया कि दाल में। काला है।

417. दिमाग आसमान पर चढ़ना–(बहुत घमण्ड होना)

कभी–कभी उसका दिमाग आसमान पर चढ़ जाता है।

418. दर–दर की ठोकरें खाना–(बहुत कष्ट उठाना)

पूँजीवादी व्यवस्था में करोड़ों बेरोज़गार दर–दर की ठोकरें खा रहे हैं।

419. दमड़ी के तीन होना–(सस्ते होना)

अब वह जमाना गया जब दमड़ी के तीन सन्तरे मिलते थे।

420. दिन में तारे दिखाई देना–(बुद्धि चकराने लगना)

यदि ज़्यादा बोले तो ऐसा थप्पड़ मारूंगा दिन में तारे दिखाई देने लगेंगे।

421. दम भरना–(भरोसा करना)

अब तो तुम मुसीबत में फँसे हो, कहाँ है वे तुम्हारे सभी दोस्त, जिनका तुम दम भरते थे?

422. दिन–रात एक करना–(प्रयास करते रहना)

श्यामलाल ने अपने मित्र गोपी को उन्नति करते देख कह ही दिया–“अब तो तुमने दिन–रात एक कर रखे हैं, तभी तो उन्नति कर रहे हो।”

423. दूध का दूध और पानी का पानी–(पूर्ण न्याय करना)

आजकल न्यायालयों में दूध का दूध और पानी का पानी नहीं हो पाता है।

(ध)

424. धज्जियाँ उड़ाना–(दुर्गति)

सचिन ने शोएब अख्तर की गेंदबाजी की धज्जियाँ उड़ा दीं।

425. धूप में बाल सफ़ेद होना–(अनुभवहीन होना)

मैं तुम्हारा मुकदमा जीतकर रहूँगा, ये बाल कोई धूप में सफेद नहीं किए हैं।

426. धोती ढीली होना–(घबरा जाना)

जंगल में भालू देखते ही उसकी धोती ढीली हो गई।

(न)

427. नस–नस पहचानना–(किसी के अवांछित व्यवहार को विस्तार से जानना)

मालिक और मज़दूर एक–दूसरे की नस–नस को पहचानते हैं।

428. नाव में धूल उड़ाना–(व्यर्थ बदनाम करना)

मेरे विषय में सब लोग जानते हैं, तुम बेकार में नाव में धूल उड़ाते हो।

429. नमक–मिर्च लगाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना)

चुगलखोर व्यक्ति नमक–मिर्च लगाकर ही कहते हैं।

430. नुक्ता–चीनी करना–(छिद्रान्वेषण करना)

“तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ कि तुम मेरे काम में नुक्ता–चीनी मत किया करो।”

431. नहले पर दहला मारना–(करारा जवाब देना)

432. नानी याद आना–(मुसीबत का एहसास होना)

इन्जीनियरिंग की पढ़ाई करते–करते तुम्हें नानी याद आ गई।

433. नाक का बाल होना–(अत्यन्त प्रिय होना)

मनोज तो नेता जी की नाक का बाल है।

434. निन्यानवे के फेर में पड़ना–(धन संग्रह की चिन्ता में पड़ना)

व्यापारी तो हमेशा निन्यानवे के फेर में लगे रहते हैं।

435. नौ दो ग्यारह होना–(भाग जाना)

चोर मकान में चोरी कर नौ दो ग्यारह हो गए।

436. नाक रगड़ना–(बहुत विनती करना)

सरकारी कर्मचारी रिश्वत वाली सीट प्राप्ति के लिए अधिकारियों के आगे नाक रगड़ते हैं।

437. नकेल हाथ में होना–(वश में होना)

उत्तर भारत में साधारणतया घर की नकेल पुरुष के हाथों में होती है।

438. नाच नचाना–(मनचाही करना)

रमेश और सुरेश दोनों मिलकर राकेश को नाच नचाते हैं।

439. नाक भौं चढ़ाना–(असन्तोष प्रकट करना)

सोनिया गाँधी के गठबन्धन पर भाजपा नाक भौं चढ़ा रही है।

440. नाक में नकेल डालना–(वश में करना)

प्रतिपक्ष ने अपनी मांगों को लेकर केन्द्र सरकार की नाक में नकेल डाल रखी है।

441. नमक अदा करना–(उपकारों का बदला चुकाना)

जयसिंह ने शिवाजी को हराकर औरंगजेब का नमक अदा कर दिया।

442. नाक कटना–(इज्जत चली जाना)

आज तुमने बदतमीज़ी करके सबकी नाक कटवा दी।

443. नीला–पीला होना–(गुस्सा होना)

मालिक तो मज़दूरों पर प्राय: नीला–पीला होते रहते हैं।

444. नाको–चने चबाना–(बहुत तंग होना)

लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों को नाको चने चबवा दिए।

445. नीचा दिखाना–(अपमानित करना)

चुनाव से पूर्व भाजपा और कांग्रेस एक–दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं।

(प)

446. पीठ पर हाथ रखना–(पक्ष मज़बूत बनाना)

तुम्हारी पीठ पर विधायक जी का हाथ है, इसीलिए इतराते फ़िरते हो।

447. पैरों पर खड़ा होना–(स्वावलम्बी होना)

मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जब तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं होऊँगा शादी नहीं करूंगा।

448. पानी–पानी होना–(शर्मसार होना)

जब रामपाल की करतूतों की पोल खुली तो वह पानी–पानी हो गया।

449. पाँव तले जमीन खिसकना–(घबरा जाना)

तुम्हारे न आने से मेरे तो पाँव तले ज़मीन खिसक गई थी।

450. पत्थर की लकीर होना–(स्थिर होना या दृढ़ विश्वास होना)

मेरी बात पत्थर की लकीर समझो।

451. पहाड़ टूट पड़ना–(मुसीबत आना)

वर्षा में मकान गिरने की सूचना पाकर राम पर पहाड़ टूट पड़ा।

452. पीठ दिखाना–(पराजय स्वीकार करना)

भारतीय सैनिक युद्ध में पीठ नहीं दिखाते।

453. पानी में आग लगाना–(असम्भव कार्य करना)

सम्राट अशोक ने लगभग पूरे भारत पर शासन किया, वह पानी में आग लगाने की क्षमता रखता था।

454. पाँचों उँगली घी में होना–(पूर्ण लाभ में होना)

कृपाशंकर ने जब से गल्ले का व्यापार किया, तब से उसकी पाँचों उँगली घी में हैं।

455. पानी उतर जाना–(लज्जित हो जाना)

लड़के का कुकृत्य सुनकर सेठ जी का पानी उतर गया।

456. पेट का हल्का–(बात को अपने तक छिपा न सकने वाला)

नीरज से कोई रहस्य मत बताना, वह तो पेट का हल्का है।

457. पटरी बैठना–(अच्छे सम्बन्ध होना)

अजीब इनसान हो, तुम्हारी पटरी किसी से नहीं बैठती।

458. पंख न मारना–(पहुँच न होना)

अयोध्या के चारों ओर ऐसी सुरक्षा व्यवस्था थी कि परिन्दा भी पर न मार सके।

459. पगड़ी रखना–(इज़्ज़त रखना)

लाला जी ने फूलचन्द की लड़की की शादी में रुपए देकर उनकी पगड़ी रख ली।

460. पेट में चूहे दौड़ना–(भूख लगना)

जल्दी से खाना दे दो, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।

461. पाँव फूंक–फूंक कर रखना–(सतर्कता से कार्य करना)

प्राइवेट नौकरी कर रहे हो, ज़रा पाँव फूंक–फूंक कर रखो।

462. पत्थर पर दूब जमना–(अप्रत्याशित घटित होना)

मैंने इण्टर में हिन्दी में विशेष योग्यता लाकर पत्थर पर दूब जमा दी।

463. पापड़ बेलना–(विषम परिस्थितियों से गुज़रना)

सरकारी तो क्या प्राइवेट नौकरी पाने के लिए भी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।

464. पाँव उखड़ जाना–(पराजित होकर भाग जाना)

हैदर अली की सेना के समक्ष अंग्रेज़ों के पैर उखड़ गए।

(फ)

465. फूंक मारना–(किसी को चुपचाप बहकाना)

लीडर ने मजदूरों में क्या फूंक मार दी, जिससे उन्होंने हड़ताल कर दी।

466. फट पड़ना–(एकदम गुस्से में हो जाना)

संजय किसी बात पर कई दिनों से मुझसे नाराज़ था, आज जाने क्या हुआ फट पड़ा।

467. फूल सूंघकर रह जाना–(अत्यन्त थोड़ा भोजन करना)

गोयल साहब इतना कम खाते हैं, मानो फूल सूंघकर रह जाते हों।

468. फूंक–फूंक कर कदम रखना–(अत्यन्त सतर्कता के साथ काम करना)

इतिहास साक्षी है कि पाकिस्तान से कोई भी समझौता करते समय भारत को फूंक–फूंक कर पाँव रखने होंगे।

469. फूलकर कुप्पा होना–(बहुत प्रसन्न होना)

संतू ने जब सुना कि उसकी बेटी ने उत्तर प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं, तो वह खुशी के मारे फूलकर कुप्पा हो गया।

470. फावड़ा चलाना–(मेहनत करना)

मजदूर फावड़ा चलाकर अपनी रोजी–रोटी कमाता है।

471. फिकरा कसना–(व्यंग्य करना)

“तुम तो हमेशा ही मुझ पर फिकरे कसती रहती हो, दीदी को कुछ नहीं कहती।”

472. फूटी आँखों न भाना–(बिल्कुल अच्छा न लगना)

पृथ्वीराज जयचन्द को फूटी आँख भी नहीं भाते थे।

473. फूला न समाना–(बहुत प्रसन्न होना)

पुत्र की उन्नति देखकर माता–पिता फूले नहीं समाते हैं।

474. फीका लगना–(घटकर या हल्का प्रतीत होना)

“तुम्हारी बात में वजन तो था, लेकिन रामशरण की बात के सामने तुम्हारी बातफीकी पड़ गई।

475. बरस पड़ना–(अति क्रुद्ध होकर डाँटना)

पवन ने गलत बंडल बांध दिया तो सेठ जी उस पर बरस पड़े।

476. बाँछे खिलना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)

लड़का पी. सी. एस. हो गया तो सक्सेना साहब की बांछे खिल गईं।

477. बावन तोले पाव रत्ती–(बिल्कुल ठीक हिसाब)

खचेडू पंसारी का हिसाब बावन तोले पाव रत्ती रहता है।

478. बाग–बाग होना–(अति प्रसन्न होना)

गिरिराज लोक सेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ, तो उसके परिवार वाले बाग–बाग हो उठे।

479. बीड़ा उठाना–(दृढ़ संकल्प करना)

क्रांतिकारियों ने भारत को आजाद कराने के लिए बीड़ा उठा लिया है।

480. बखिया उधेड़ना–(भेद खोलना)

मनोज ने सबके सामने संजय की बखिया उधेड़ कर रख दी।

481. बात न पूछना–(आदर न करना)

रमेश ने सिनेमा देखने जाने से पहले पिता जी से नहीं पूछा।

482. बट्टा लगाना–(दोष या कलंक लगना)

रिश्वत लेते पकड़े जाने पर अधिकारी की शान में बट्टा लग गया।

483. बाल–बाल बचना–(बिल्कुल बच जाना)

चंद्रबाबू नायडू नक्सलवादी हमले में बाल–बाल बचे थे।

484. बेदी का लोटा–(ढुलमुल)

मनोज की बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए, वह तो बेपेंदी का लोटा है।

485. बल्लियों उछलना–(बहुत खुश होना)

अपने अरिहंत प्रकाशन में सेलेक्शन की बात सुनकर वह बल्लियों उछलने लगा।

486. बाजार गर्म होना–(काम–धंधा तेज होना)

आजकल कालाबाजारी का बाज़ार गर्म है।

487. बात ही बात में–(तुरंत)

बात ही बात में उसने तमंचा निकाल लिया।

488. बंटाधार होना–(चौपट या नष्ट होना)

हृदय प्रताप के व्यापार का ऐसा बंटाधार हुआ कि वह आज तक नहीं पनप पाया।

489. बहती गंगा में हाथ धोना–(बिना प्रयास ही यश पाना)

जीवन में कभी–कभी बहती गंगा में हाथ धोने के अवसर मिल जाते हैं।

490. बछिया का ताऊ–(मूर्ख)

शिवकुमार से यह काम नहीं होगा, वह तो बछिया का ताऊ है।

491. बड़े घर की हवा खाना–(जेल जाना)

राजू अपने अपराध के कारण ही बड़े घर की हवा खा रहा है।

492. बाल बाँका न होना–(कुछ भी हानि या कष्ट न होना)

जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।

493. बालों में से तेल निकालना–(असम्भव को सम्भव कर देना)

बढ़ती महंगाई को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब महंगाई को दूर करना बालों में से तेल निकालने के समान हो गया है।

494. बात का धनी होना–(वचन का पक्का होना)

राजीव ने कह दिया तो समझो वह नहीं जाएगा, वह अपनी बात का धनी है।

495. बेसिर पैर की बात करना–(व्यर्थ की बातें करना)

गिरीश मोहन तो बेसिर पैर की बात करता है।

496. भैंस के आगे बीन बजाना–(बेसमझ आदमी को उपदेश)

अनपढ़ व अंधविश्वास लोगों से मार्क्सवाद की बात करना भैंस के आगे बीन बजाना है।

497. भागीरथ प्रयत्न करना–(कठोर परिश्रम)

स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारतीयों ने भगीरथ प्रयत्न किया।

498. भविष्य पर आँख होना–(आगे का जीवन सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना)

मेरे बेटे ने एम. बी. ए. की परीक्षा पास कर ली है, परन्तु मेरी आँखें अब भी उसके भविष्य पर लगी रहती हैं।

499. भाड़े का टटू–(पैसे लेकर ही काम करने वाला)

चुनावों में भाड़े के टटुओं की तो मौज आ जाती है।

500. भाड़ झोंकना–(समय व्यर्थ खोना)

दिल्ली में रहकर कुछ नहीं सीखा, वहाँ क्या भाड़ झोंकते रहे।

501. भीगी बिल्ली बनना–(डर जाना)

पुलिस की आहट पाते ही चोर भीगी बिल्ली बन जाते हैं।

502. भेड़ियां धसान–(अंधानुकरण)

हमारा गाँव भेड़िया धसान का सशक्त उदाहरण है।

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